दिन बीतता है, शाम होती है,
रात आती है, फिर सुबह होती है,
हम सबको हर समय बदलता है,
घड़ी का कांटा हमेशा चलता है
एक समाज पनपता है, राज करता है,
एक वर्ग दबता है, गिरता है, फिर सम्हलता है,
नव उत्थान आता है, क्रांति का विगुल बजता है,
घड़ी का कांटा हमेशा चलता है
एक विचार जनमता है, फिर बढ़ता है,
वह विचार फिर सबमे बसता है,
आँख देता है, कान देता है, एक नई जुबान देता है,अधिकार देता है, एक नया सम्मान देता है,
समाज को एक नयी पहचान देता है,
न रुकता है, न थकता है, न थमता है,
घड़ी का कांटा हमेशा चलता है
bahut khoobsurat rachna ... waqt kisi ke liye nahi rukta aur na hi rukta hai badlav...
ReplyDeleteथैंक्स क्षितिजा..गजेन्द्र जी
ReplyDeletesundar abhivyakti...
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