Friday, October 29, 2010
ये एक नई सुबह है
हरे पत्तों पर ठंडी ओस की बूँद,
चिड़ियों की चहचाहट की गूँज,
और ठंडी ठंडी धीमी बयार,
हमसे कुछ कहते हैं यार,
ये एक नई सुबह है!
दादा जी का मॉर्निग वाक, अपनी पोती के साथ,
उस घर से आती छोटे बच्चे की आवाज़,
अँधेरे को चीरता ये उजास,
कराता है हमे ये एहसास,
ये एक नई सुबह है!
आँखों में कुछ सपनों की आस,
आलस्य को हराता नव-उल्लास,
हर पल बढ़ता ये प्रकाश,
मन को दिलाता यह विश्वास,
ये एक नई सुबह है!
Sunday, October 17, 2010
आज माँ ने दुर्गा का रूप लिया है
एक भीमकाय आकृति गिर रही है पृथ्वी पर,
रक्तरंजित शरीर, छिन्नभिन्न है अहंकार,
आहत है विकराल दानव,
राग-द्वेष-मोह, तीन सर उसके,
कट रहे हैं एक एक कर,
पराजित हो गया है वह ‘शक्ति’ से,
मर्दन हो गया है उसके अस्तित्व का,
बड़ी बड़ी आँखें, बिखरे बाल,
भुजाओं में अस्त्र, जिह्वा है लाल,
प्रचंड है आकार, प्रबल है प्रहार,
महिषासुरमर्दिनी हो तेरी जय,
तम पर हो सदा सत्य की विजय,
आज तुने ‘दुर्गा’ का रूप लिया है,
किया है रक्त पान,
इस दूषित रक्त को अब तू अमृत में बदल,
जिसकी एक बूँद आज सबको मिले,
और तेरा अंश हो सबमें व्याप्त,
हम सब करें पराजित तेरी शक्ति से,
अपने अपने अंदर छिपे दानवों को,
और करें जय अपने मन पर,
माँ तू अब सदा हममें वास कर..
Thursday, October 14, 2010
शुक्रिया मुझे जन्म देने का.!
मुझे पता हैं उठा लोगे तुम,
इसलिए मैं गिरने से नहीं डरती.
तुम्हारी हंसी से मेरे आंसू हंसी में बदल जाते हैं,
एक साहस सा पनप आता है तुम्हे देख के,
मेरी हार जीत में बदलेगी, ये तुम्हे मालूम है
...इसलिए मैं हारने से नहीं डरती,
गिरती हूँ, फिर सम्हालती हूँ, कोशिश करती हूँ,
तुम्हारी आँख की चमक मेरी आँखो की चमक में बदल जाती है,
हवा में जब तुम मुझे उछालते हो, पता है मैं तुम्हारे हाथों में गिरूंगी,
इसलिए अपने आप को तुम्हारे हवाले कर देती हूँ,
सुरक्षित रहती हूँ कुछ समय तक, तुम्हारे पास,
तब तक, जब तक मैं 'दूसरे के हवाले' नहीं हो जाती,
तब तुम्हारी आँखों के आंसू सदा के लिए मेरी आँखों में बस जाते हैं,
मैं कुछ भी कर सकती हूँ, कुछ भी बन सकती हूँ,
जन्म दे सकती हूँ एक उद्धारक को,
अगर खुद जन्म ले सकूं तो..!!
शुक्रिया मुझे जन्म देने का.!
Saturday, October 9, 2010
तिनके से ख़याल
घास के तिनके से उड़ते जा रहे हैं कुछ ख़याल,
कभी खेत में गिरते, कभी पेड पे हैं टिकते,
कभी गौरैया के घोंसले बनते, कभी लंबे बालों में जा उलझते,
कभी किताब के पन्ने पढते, कभी चूल्हे में जलते,
इतने हलके, इतने महीन, हर कहीं जा पहुँचते,
जब ये गीली मिट्टी पे गिरेंगे, जमेंगे और उगेंगे
सांस लेंगे, धूप में अपनी खुराक लेंगे,
फिर ये तिनका नहीं रहेंगे, बढ़ेंगे और पेड हो जायेंगे
फूलेंगे, फलेंगे और फिर एक तिनके को जन्म देंगे.
और एक नया पेड़ बन जाएंगे ,
खिलेंगे, खिलखिलाएंगे, लहलहायेंगे!
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