Sunday, November 14, 2010
वसु
(मेरा भांजा 'वसु')
वो भाग रहे वो कूद रहे
वो गिर रहे फिर उठ रहे,
नटखट, चंचल और शैतान,
हैं बिल्कुल एक खरगोश समान,
ये हैं हमारे वसु श्रीमान,
सुबह से शाम तक सबको हिला देते हैं,
चैन ले लेते हैं और नींद चुरा लेते हैं,
कर देते हैं नाक में दम,
जब अपनी पे आ जाएँ तो नहीं किसी जिन्न से कम,
इनकी करतूतों के हैं किस्से तमाम,
ये हैं हमारे वसु श्रीमान,
मम्मी-पापा को कर देते हैं भयभीत,
डांटने पर निकाल देते हैं संगीत,
जो मना करो बस वही करते हैं,
इनकी खुराफातों से सभी डरते हैं,
इनको दूध पिलाना है एक युद्ध समान,
ये हैं हमारे वसु श्रीमान,
पर हैं बड़े ही प्यारे,
‘कृष्ण समान’, सबके दुलारे,
पापा-मम्मी के आँखों के तारे,
नाना-नानी को लगते हैं न्यारे,
मामा-मामी भी हैं इनके फैन,
ऐसे हैं भई वसु हमारे.
Friday, November 12, 2010
गुन्नू
मेरी प्यारी भांजी गुनगुन उर्फ 'गुन्नू' ..उसके लिए इन पंक्तियों को लिखने से अपने आप को रोक नहीं पाया..
हँसती गाती मौज मनाती,
खेल खेल में बढती जाती,
वक्त के साथ हाथ मिलाती,
नित नए है पाठ पढाती,
सबकी प्यारी गुन्नू.
कथक पे है पैर थिरकाती,
पिआनो पर भाई का साथ निभाती,
टेनिस के खेल में रंग जमाती,
कहानियाँ पढ़ती तो पढ़ती ही जाती,
रात को सुनती और सुनाती,
सबकी प्यारी गुन्नू.
पापा के है पैर दबाती,
मम्मी का है सर सहलाती,
नाना को घोडा बनवाती,
नानी को घर भर दौड़ाती,
सबकी प्यारी गुन्नू.
क्लास में सबको दोस्त बनाती,
पढ़ाई में हमेशा अव्वल आती,
होमवर्क को सदा कर जाती,
टीचर से वेरी गुड पाती,
सबकी प्यारी गुन्नू.
मामा-मामी से प्यार जताती,
जब भी आयें गले लगाती,
हाथ पकड़ के सैर कराती,
कंधे पर चढ़ चक्कर लगवाती,
सबकी प्यारी गुन्नू.
गुन्नू सबकी प्यारी है.
घर भर की दुलारी है,
आगे बढती जायेगी,
खूब नाम कमाएगी.
हँसती गाती मौज मनाती,
खेल खेल में बढती जाती,
वक्त के साथ हाथ मिलाती,
नित नए है पाठ पढाती,
सबकी प्यारी गुन्नू.
कथक पे है पैर थिरकाती,
पिआनो पर भाई का साथ निभाती,
टेनिस के खेल में रंग जमाती,
कहानियाँ पढ़ती तो पढ़ती ही जाती,
रात को सुनती और सुनाती,
सबकी प्यारी गुन्नू.
पापा के है पैर दबाती,
मम्मी का है सर सहलाती,
नाना को घोडा बनवाती,
नानी को घर भर दौड़ाती,
सबकी प्यारी गुन्नू.
क्लास में सबको दोस्त बनाती,
पढ़ाई में हमेशा अव्वल आती,
होमवर्क को सदा कर जाती,
टीचर से वेरी गुड पाती,
सबकी प्यारी गुन्नू.
मामा-मामी से प्यार जताती,
जब भी आयें गले लगाती,
हाथ पकड़ के सैर कराती,
कंधे पर चढ़ चक्कर लगवाती,
सबकी प्यारी गुन्नू.
गुन्नू सबकी प्यारी है.
घर भर की दुलारी है,
आगे बढती जायेगी,
खूब नाम कमाएगी.
Saturday, November 6, 2010
सिहरन
मैं गाड़ी में बैठा सिग्नल हरा होने का इंतज़ार कर रहा था,
तभी खिडकी के शीशे पर ठकठकाने के आवाज हुई,
और सिहरती हुई, हाथ जोड़े, दो पथराई आँखे दिखीं,
मैं शीशा नहीं खोल पाया,
पर पता नहीं कैसे हवा का एक ठंडा झोंका भीतर आ गया, जबरन.
बदन में एक पुरानी सी सिहरन, पैदा कर गया,
और मुझे कुछ बीस साल पहले घसीट ले गया,
जनवरी के महीने में,
जब मैं दो दो स्वेटर पहन कर, टोपी और मफलर लगा कर,
सयकिल से ट्यूशन पढ़ने जाता था,
और नाले पर रोज निक्कर पहने एक लड़का दीखता था,
लगभग मेरी ही उम्र का,
कांपते हुए, और, ठंडी राख तापते हुए,
मेरी तरफ देख के मुस्कुराता था,
पर मैं मुस्कुरा नहीं पाता था,
डर सा जाता था.
आज गाड़ी के अंदर, ऐ सी में बैठ कर,
मुझे, वैसा ही डर लग रहा है,
आज वो लड़का मुस्कुरा नहीं रहा है,
तभी खिडकी के शीशे पर ठकठकाने के आवाज हुई,
और सिहरती हुई, हाथ जोड़े, दो पथराई आँखे दिखीं,
मैं शीशा नहीं खोल पाया,
पर पता नहीं कैसे हवा का एक ठंडा झोंका भीतर आ गया, जबरन.
बदन में एक पुरानी सी सिहरन, पैदा कर गया,
और मुझे कुछ बीस साल पहले घसीट ले गया,
जनवरी के महीने में,
जब मैं दो दो स्वेटर पहन कर, टोपी और मफलर लगा कर,
सयकिल से ट्यूशन पढ़ने जाता था,
और नाले पर रोज निक्कर पहने एक लड़का दीखता था,
लगभग मेरी ही उम्र का,
कांपते हुए, और, ठंडी राख तापते हुए,
मेरी तरफ देख के मुस्कुराता था,
पर मैं मुस्कुरा नहीं पाता था,
डर सा जाता था.
आज गाड़ी के अंदर, ऐ सी में बैठ कर,
मुझे, वैसा ही डर लग रहा है,
आज वो लड़का मुस्कुरा नहीं रहा है,
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