Wednesday, December 29, 2010

नया साल

फिर आ गया एक नया साल,

पिछले तमाम सालों की तरह,

अपनी वही ‘पुरानी जिंदगी’ बिताने के लिए

हम सबका रचा, एक ‘नया साल’

नई खोजों, नए प्रयासों का साल,

नए तरीके से पैसा कमाने का साल,

झूठ बोलने का, पाप करने का साल,

नौकरी, शादी, तलाक का साल,

बच्चे पैदा करने का साल,

जीने का साल,

मरने का साल,

फिर से खुद को भूल जाने का साल,

नया साल,


फिर चलेगा, पुरानी घटनाओं पर,

समीक्षाओ और चर्चाओं का दौर,

फिर हम अपनी उपलब्धियां गिनाएंगे,

दोषों और कमियों को बिसरायेंगे ,

गुजरे साले ने हमें कैसे गुजारा,

एक दुसरे को सुनायेंगे,

नए साल पर नए वादे करेंगे,

कुछ दिनों के लिए फिर कसमें खायेंगे,

पिछली बातों को,

पुराने वादों और पुरानी कसमों को,

सच को,

एक बार फिर से भूल जायेंगे,

नए सिरे से फिर वही सब दुहराएंगे,

और अगले साल,

फिर ‘एक नया’ साल मनाएंगे.

Monday, December 20, 2010

पटकथा





















उसके आंसू ढलक गये चुपचाप,

पसीने की धार में छुपकर.

वे शब्द उसके कान में पड़ रहे थे और जवाब आँखें दे रही थी,

कह तो यूं ही रही थी वह कुछ… पता नहीं क्या

उसे फिर लगा एक बार कि बस औरत है वह एक.

इंसान होना कुछ और होता है शायद


दो आदमियों और एक औरत, का सामना कर रही थी वो,

एक उसका, जिसके साथ उसने अपना अस्तित्व जोड़ दिया था,

एक उसका,  जो पिता था पर अपने बेटों का,

और एक उसका, जो समय के साथ खो चुकी है अपना अस्तित्व

एक रिश्ते को छोड़ आई थी वह एक नए रिश्ते के लिए

यह पहली बार नहीं हुआ उसके साथ,

हज़ार बरसों से होता आ रहा है.


शुक्र है यह सब हो रहा था टीवी के रुपहले पर्दे पर

और ख़त्म हो गया कुछ घंटों में ही

सब उस धारावाहिक की कहानी में खो गए,

उसने ठंडी सांस ली.

हर किरदार ने बख़ूबी निभाई थी अपनी भूमिका,

उसे लगा कि उसी ने लिखी है यह पटकथा जिसने लिखी उसकी ज़िन्दगी की

अब वो पूजा नहीं करती.

धारावाहिक देखती है,

Monday, December 6, 2010

कंप्यूटर






















इकीसवीं सदी.

बीस-पच्चीस साल का युवक.

आँखों में आंसू,

चेहरे पर तनाव, दिल में कुछ अनकहे जज़्बात.

उसकी उँगलियों का दबाव कंप्यूटर स्क्रीन पर ,

एक-से हरफों में एक एक कर उभर रहा है.

वो दिल की धडकन कंप्यूटर पर ‘टाइप’ करने की कोशिश कर रहा है,

और तार के ज़रिये दूसरे कंप्यूटर स्क्रीन तक पहुँचाना चाह रहा है.

उन काले, रेगुलर, टाईम्स न्यू रोमन, १० फाँट के शब्दों में संजीदगी डाल रहा है.

उम्मीद है उसे की उसके ख़याल, उसके जज़्बात, उसकी महक और उसकी सांस भी

शायद पहुँच रही दूर कहीं, दूसरी स्क्रीन पर, ‘एक अजनबी, अनदेखे’ चेहरे तक.


वो आस्तिक है.

उसे अनदेखे, अनजाने भगवान में यकीन है,

उसे उसका भगवान एक दिन मिलेगा?

शायद वो कंप्यूटर स्क्रीन से ही निकल आये,

आखिर भगवान तो हर जगह व्याप्त है.!