जीवन के इस सफर में
बस चलते जाना है.
हर राह - कंटक, निष्कंटक
से गुजरते जाना है.
कष्ट, दुःख, संताप
से उबरते जाना है.
माया मोह के इस जाल में
निरंतर फंसते जाना है.
अपने कर्तव्यों, दायित्यों पर
हर तरफ से
खरा उतरते जाना है.
धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष
इन चार सत्यों का,
एक जविक कर्म की भांति,
एक बुद्धियुक्त, सोचयुक्त
रोबोट के सामान,
नियमबद्ध तरीके से
पालन करते जाना है.
लोभ,इर्ष्या,तृष्णा,स्वार्थ
अहंकार,राग,द्वेष,क्लेश
इन मॉर्डेन अलंकारों से
खुद को विभूषित करते जाना है.
जीवन की इस अंतहीन दौड में
एक मृग की भांति,
मृगमारीचिका के पीछे,
भ्रामक जल के पीछे,
बिना रुके, बिना थके,
बस दौड़ते जाना है.
एक रोटी, कपडा और मकान
के लिए,सारा जीवन
लड़ते जाना है.
हाँ मैं भी हूँ!
मेरा भी एक अस्तित्व है!
इस धरा पर
मेरा भी एक स्थान है.
इस विचार, इस तथ्य को
बिसरते जाना है.
इस जीवन के
अर्थ से परिचित होते हुए भी
अपने आप को भूलते हए
बस,
चलते जाना है , चलते जाना है.
Wednesday, July 28, 2010
Sunday, July 18, 2010
यूँ ही....
यूँ ही मन में एक ख़याल आया
कि हमेशा एक सा क्यूँ नहीं रहता हूँ मैं?
कभी खुश तो कभी उदास क्यूँ हो जाता हूँ?
क्यूँ कभी शाम की ठंढी हवाएं भी मनहूस लगती हैं?
क्यूँ कभी चिलचिलाती धूप भी खुशगवार लगती है?
क्यूँ आज खुशी बांटने को जी करता है?
तो कल उदासी संभले नहीं संभलती.
ये दिन हमेशा एक से क्यूँ नहीं रहते!
क्या मैं हमेशा खुश नहीं रह सकता?
आखिर वो क्या चीज है,
जो आज खुशी तो कल उदासी पैदा कर देती है
मैं खोजता हूँ ऐसे मनुष्य को जो
हमेशा खुश रहता हो, पर
दुर्भाग्य,ऐसा अब तक कोई नहीं मिला मुझे
तो क्या हर व्यक्ति मेरे जैसा ही है!
क्या सभी को खुशी की तलाश है!
पर खुशी मिलती कैसे है?
पैसा, नौकरी, सोशल स्टेटस, शानो शौकत.....
तो क्या आज सारे पैसे वाले खुश हैं?
सभी कार वाले, बंगले वाले खुश हैं?
शायद नहीं.
इनके पास तो वो सब है, जिनसे मैं खुश हो सकता हूँ
तो वे क्यूँ नहीं!
इन्हें कैसे खुशी मिलती है?
इन्हें किस चीज की तलाश है!
हम सबसे कहीं बेहतर तो वो गरीब मजदूर है,
जो अपनी झोपड़ी में खुश रहता है.
Thursday, July 15, 2010
लाल सलाम
Saturday, July 10, 2010
प्रतियोगिता
एक नौजवान युवक,
आशा और उत्साह से पूर्ण,
कुछ करने के लिए, कर दिखाने के लिए,
पढता है, प्रतियोगिता में बैठता है.
एक सीमित स्थान के लिए;
खड़ी विशाल भीड़ में,
खुद की संभावना तलाशता है.
इस हौसले और उम्मीद के साथ, कि
उसने सुना था, “परिश्रम का फल मीठा होता है”
पर जब वह एक साल बाद
अखबार के दो पूरी तरह भरे पन्नों के बीच
अपना नाम नहीं पाता; कहीं नहीं
तब वह यह सोचता है या
सोचने पर मजबूर होता है कि,
शायद
कहीं उसी की गलती थी,
कहीं कमी रह गयी होगी उसी से.
और वह अगले साल के लिए
एक बढ़ी हुई भीड़ में
स्थान पाने के लिए,
फिर तैयारी में जुड जाता है ,
इस आशा और उम्मीद के साथ, कि
शायद! “परिश्रम का फल मीठा होता है”
आशा और उत्साह से पूर्ण,
कुछ करने के लिए, कर दिखाने के लिए,
पढता है, प्रतियोगिता में बैठता है.
एक सीमित स्थान के लिए;
खड़ी विशाल भीड़ में,
खुद की संभावना तलाशता है.
इस हौसले और उम्मीद के साथ, कि
उसने सुना था, “परिश्रम का फल मीठा होता है”
पर जब वह एक साल बाद
अखबार के दो पूरी तरह भरे पन्नों के बीच
अपना नाम नहीं पाता; कहीं नहीं
तब वह यह सोचता है या
सोचने पर मजबूर होता है कि,
शायद
कहीं उसी की गलती थी,
कहीं कमी रह गयी होगी उसी से.
और वह अगले साल के लिए
एक बढ़ी हुई भीड़ में
स्थान पाने के लिए,
फिर तैयारी में जुड जाता है ,
इस आशा और उम्मीद के साथ, कि
शायद! “परिश्रम का फल मीठा होता है”
Thursday, July 1, 2010
कर्म और मैं
धराशायी है आज अंधकार और निराशा
विजय पताका फहरा है ‘आत्मबल’
बढ़ चले हैं लक्ष्य की और ठोस कदम
अब नहीं थमेगा ये परिश्रम.
समर्पण, उत्साह और एकाग्रता आज मेरे मित्र हैं
जो अब सदा के लिए मेरे साथ हैं.
महसूस कर लिया है मैंने ;
पा ली है वो सुखद अनुभूति ;
चख लिया है वह अद्वितीय स्वाद;
जब से मैंने कर्म का वरण किया है.
‘जीवन की सफलता’ अब निश्चित है
“सत्य” अब दूर नहीं,
कर्म और मैं अब एक हो चले हैं ..
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