Saturday, September 11, 2010
आज भी याद मुझे वो गाय है
काली बड़ी बड़ी आँखों से मुझे ताकती,
अपनी पूँछ से मक्खियाँ उड़ाती,
मुंह पगुराती, कान हिलाती, अपने होने का एहसास दिलाती
आज भी याद मुझे वो गाय है
अपने बछड़े के सामान प्यार जताती,
थन का अपने दूध पिलातीं,
एक माँ का सा फर्ज निभाती,
आज भी याद मुझे वो गाय है.
पीछे जिसके छुप के हम आइस पाईस खेला करते,
अकेलेपन में जिसको प्यार करते,
जिसके गले के लटकाव, हम जी भर सहलाया करते,
जो आँख बंद कर, बिन बोले बहुत कुछ कहती
आज भी याद मुझे वो गाय है
जिसके गोबर से हम उपले जलाते, और उसमे लिट्टी पकाते,
होने से जिसके हम शांति पाते,
जिसके गले की घंटी की आवाज आज भी है सुनाई पड़ती
आज भी याद मुझे वो गाय है
एक खूंटे और एक रस्सी से बंधी वो दिन भर खड़ी रहती,
किसी बात का प्रतिरोध न करती,
सींग से जिसकी ज़रा न डर लगता,
देख जिसको हरी भावना उमड़ आती,
आज भी याद मुझे वो गाय है.
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woowww so sweet !!
ReplyDeletetoo good... from now when every time I will see my Cow at home I will remember this poem...
ReplyDeletethanks pooja..and thanks seema
ReplyDeletenice and very touchy poem..
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