झगड़ रहे थे तीन बेटे एक माँ के
सोने को माँ के पास, उसकी गोद में, एक ही जगह
काफी समझाने पर भी नहीं समझे,
फिर माँ ने फैसला सुनाया.
तीनो को अगल बगल सुलाया,
और एक-एक कर तीनो को सीने से लगाया.
आज सुप्रीम कोर्ट ने भी वैसा ही फैसला सुनाया है
आयें झगड़ा सदा के लिए खत्म करें
और एक दूसरे से प्रेम करें
Thursday, September 30, 2010
Saturday, September 25, 2010
घड़ी का कांटा हमेशा चलता है.
दिन बीतता है, शाम होती है,
रात आती है, फिर सुबह होती है,
हम सबको हर समय बदलता है,
घड़ी का कांटा हमेशा चलता है
एक समाज पनपता है, राज करता है,
एक वर्ग दबता है, गिरता है, फिर सम्हलता है,
नव उत्थान आता है, क्रांति का विगुल बजता है,
घड़ी का कांटा हमेशा चलता है
एक विचार जनमता है, फिर बढ़ता है,
वह विचार फिर सबमे बसता है,
आँख देता है, कान देता है, एक नई जुबान देता है,अधिकार देता है, एक नया सम्मान देता है,
समाज को एक नयी पहचान देता है,
न रुकता है, न थकता है, न थमता है,
घड़ी का कांटा हमेशा चलता है
Tuesday, September 21, 2010
इंसानियत के सत्य को हैवानियत के प्रश्न पे विजय पानी होगी!!
कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिनका कोई उत्तर नहीं होता. एक कहावत बोली जाती है -अंडा पहले हुआ या मुर्गी. इस विषय पर तमाम चर्चाएँ हुई है, बहस हुई हैं पर इसका उत्तर कोई नहीं खोज पाया. ये कुछ ऐसे प्रश्न होते हैं जिनका उत्तर खोजना व्यर्थ है क्यूंकी इससे सत्य पर कोई फर्क नहीं पड़ता.जैसे “अंडा पहले हुआ या मुर्गी” इस प्रश्न से इस सत्य पर कोई फर्क नहीं पड़ता की “मुर्गी कटती है और अंडे का आमलेट बनता है”.
आज भी हमे एक प्रश्न और सत्य में से सत्य का चुनाव करना है..प्रश्न है “बाबरी मस्जिद पहले हुई या मंदिर पहले बना” और सत्य है की इस प्रश्न का उत्तर ढूँढने में हम लड़ते हैं, मरते हैं और मारते हैं. हमे इस सत्य को पहचानना होगा.इस सत्य को भी की मंदिर और मस्जिद में हम सर झुकाते हैं, पवित्र होते हैं,पापों के लिए क्षमा मांगते है..न की दूसरों से झगडा करते हैं और खून बहाते हैं.हमे इस सत्य को भी पहचानना होगा की ..धर्म मानवता के लिए बना है हैवानियत के लिए नहीं....इंसानियत के सत्य को हैवानियत के प्रश्न पे विजय पानी होगी
२४ सितम्बर २०१० को अयोध्या विवाद पर कोर्ट का फैसला आने वाला है..जिससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला सत्य पर. इतिहास को सुधारने की कोशिश से बेहतर है भविष्य को बेहतर बनाना
Thursday, September 16, 2010
जो निकल गया वो शेर है....
जो थम गया वो अश्क है,
जो बरस गया वो पानी है.
जो गरज गया वो बादल है,
जो छंट गया वो गफलत है.
जो दिख गयी वो मुस्कान है,
जो छिप गया वो जज़्बात है.
जो सोच लिया वो हरफ है,
जो मह्सूस किया वो धडकन है,
जो दब गयी वो बेचैनी है,
जो निकल गया वो शेर है.
Saturday, September 11, 2010
आज भी याद मुझे वो गाय है

काली बड़ी बड़ी आँखों से मुझे ताकती,
अपनी पूँछ से मक्खियाँ उड़ाती,
मुंह पगुराती, कान हिलाती, अपने होने का एहसास दिलाती
आज भी याद मुझे वो गाय है
अपने बछड़े के सामान प्यार जताती,
थन का अपने दूध पिलातीं,
एक माँ का सा फर्ज निभाती,
आज भी याद मुझे वो गाय है.
पीछे जिसके छुप के हम आइस पाईस खेला करते,
अकेलेपन में जिसको प्यार करते,
जिसके गले के लटकाव, हम जी भर सहलाया करते,
जो आँख बंद कर, बिन बोले बहुत कुछ कहती
आज भी याद मुझे वो गाय है
जिसके गोबर से हम उपले जलाते, और उसमे लिट्टी पकाते,
होने से जिसके हम शांति पाते,
जिसके गले की घंटी की आवाज आज भी है सुनाई पड़ती
आज भी याद मुझे वो गाय है
एक खूंटे और एक रस्सी से बंधी वो दिन भर खड़ी रहती,
किसी बात का प्रतिरोध न करती,
सींग से जिसकी ज़रा न डर लगता,
देख जिसको हरी भावना उमड़ आती,
आज भी याद मुझे वो गाय है.
Tuesday, September 7, 2010
आज हवा में कुछ नमी सी है
आज हवा में कुछ नमी सी है,
दिल की धडकन कुछ थमी सी है.
मौसम के साथ, भीग गए है ख़याल भी,
कुछ यादों की महक सी आ रही है रुक रुक के,
सीने में खलिश एक अनकही सी है,
आज हवा में कुछ नमी सी है,
दिल की धडकन कुछ थमी सी है.
देखता हूँ जब दूर तक, परिंदों के साथ एक चेहरा उड़ता दिखता है,
नज़र उठ के जब गिरती है, आँखों में भर जाते हैं कुछ पुराने ख्वाब,
उठती क्यूँ एक बेचैनी सी है,
आज हवा में कुछ नमी सी है
दिल की धडकन कुछ थमी सी है.
वो मुंडेर पे बैठी कोयल, जब झाड़ती है अपने परों से पानी,
उसके छीटें कुछ पहचाने से लगते हैं, मुझसे कुछ कहते हैं,
क्यूँ आज लगती कुछ कमी सी है
आज हवा में कुछ नमी सी है,
दिल की धडकन कुछ थमी सी है.
ख्यालों का रंग हो गया है, पेड़ के नए हरे पत्तों की मानिंद
उनमे कुछ जान आ गयी है फिर से,
ये तल्खी कुछ नयी सी है,
आज हवा में कुछ नमी सी है,
दिल की धडकन कुछ थमी सी है.
नई मिटटी की सोंधी खुशबू कर जाती है सराबोर बार बार,
गुज़रे हुए लम्हे जैसे फिर ताज़ा हो गए है, नई रसद से
फिर जग रही एक उम्मीद सी है,
आज हवा में कुछ नमी सी है,
दिल की धडकन कुछ थमी सी है.
Friday, September 3, 2010
पुरानी किताब
उसने नहाने के बाद शीशे में खुद को देखा,
तो उसे अपनी एक पुरानी किताब के पीले पन्ने याद आ गए.
सिलवटें पड़ गयीं हैं जिसमे,
एक सीली सीली सी बास भी आ रही हैं.
फीकी पड़ी स्याही में लिखे वो शब्द बिना पढ़े कुछ कह रहे हैं.
बस पन्ने पलटने जाने को दिल करता है..
और पलटते जाते हैं वो बीते हुए लम्हे, जो कैद हैं इन मुड़े तुड़े कागजों में.
पर डर लगता है उसे,
कहीं इस फीके रंग, सलवटों और इस अजीब सी बास के बीच कीड़े न पड़ जायें!
तभी अचानक उसे अपनी बेचारगी, लाचारी और गुमनामी का एहसास हुआ
उसने जल्दी से अपने बदन को तौलिए से पोंछा,
इत्र लगाया, बाल बनाये और एक नयी शर्ट पहन ली.
अब वो खुद को नया नया सा पा रहा है,
जिल्द चढ़ी, पुरानी किताब की तरह!
Subscribe to:
Posts (Atom)