Wednesday, July 28, 2010

बस चलते जाना है

जीवन के इस सफर में

बस चलते जाना है.

हर राह - कंटक, निष्कंटक

से गुजरते जाना है.

कष्ट, दुःख, संताप

से उबरते जाना है.

माया मोह के इस जाल में

निरंतर फंसते जाना है.

अपने कर्तव्यों, दायित्यों पर

हर तरफ से

खरा उतरते जाना है.

धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष

इन चार सत्यों का,

एक जविक कर्म की भांति,

एक बुद्धियुक्त, सोचयुक्त

रोबोट के सामान,

नियमबद्ध तरीके से

पालन करते जाना है.

लोभ,इर्ष्या,तृष्णा,स्वार्थ

अहंकार,राग,द्वेष,क्लेश

इन मॉर्डेन अलंकारों से

खुद को विभूषित करते जाना है.

जीवन की इस अंतहीन दौड में

एक मृग की भांति,

मृगमारीचिका के पीछे,

भ्रामक जल के पीछे,

बिना रुके, बिना थके,

बस दौड़ते जाना है.

एक रोटी, कपडा और मकान

के लिए,सारा जीवन

लड़ते जाना है.

हाँ मैं भी हूँ!

मेरा भी एक अस्तित्व है!

इस धरा पर

मेरा भी एक स्थान है.

इस विचार, इस तथ्य को

बिसरते जाना है.

इस जीवन के

अर्थ से परिचित होते हुए भी

अपने आप को भूलते हए

बस,

चलते जाना है , चलते जाना है.

1 comment:

  1. चलते जाईये..शुभकामनाएँ.

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