Sunday, July 18, 2010
यूँ ही....
यूँ ही मन में एक ख़याल आया
कि हमेशा एक सा क्यूँ नहीं रहता हूँ मैं?
कभी खुश तो कभी उदास क्यूँ हो जाता हूँ?
क्यूँ कभी शाम की ठंढी हवाएं भी मनहूस लगती हैं?
क्यूँ कभी चिलचिलाती धूप भी खुशगवार लगती है?
क्यूँ आज खुशी बांटने को जी करता है?
तो कल उदासी संभले नहीं संभलती.
ये दिन हमेशा एक से क्यूँ नहीं रहते!
क्या मैं हमेशा खुश नहीं रह सकता?
आखिर वो क्या चीज है,
जो आज खुशी तो कल उदासी पैदा कर देती है
मैं खोजता हूँ ऐसे मनुष्य को जो
हमेशा खुश रहता हो, पर
दुर्भाग्य,ऐसा अब तक कोई नहीं मिला मुझे
तो क्या हर व्यक्ति मेरे जैसा ही है!
क्या सभी को खुशी की तलाश है!
पर खुशी मिलती कैसे है?
पैसा, नौकरी, सोशल स्टेटस, शानो शौकत.....
तो क्या आज सारे पैसे वाले खुश हैं?
सभी कार वाले, बंगले वाले खुश हैं?
शायद नहीं.
इनके पास तो वो सब है, जिनसे मैं खुश हो सकता हूँ
तो वे क्यूँ नहीं!
इन्हें कैसे खुशी मिलती है?
इन्हें किस चीज की तलाश है!
हम सबसे कहीं बेहतर तो वो गरीब मजदूर है,
जो अपनी झोपड़ी में खुश रहता है.
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आपने मजदूर से पूछा कि वो कितना खुश है ? ऐसा हमें लगता है कि दूसरे हर हाल में खुश हैं एक हमारे सिवाय...
ReplyDeleteअभिव्यक्ति सुन्दर है
तुम्हारी उलझन हर जेनुईन आदमी की उलझन है असीम…और रास्ता भी शायद इसी से निकलेगा
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