एक नौजवान युवक,
आशा और उत्साह से पूर्ण,
कुछ करने के लिए, कर दिखाने के लिए,
पढता है, प्रतियोगिता में बैठता है.
एक सीमित स्थान के लिए;
खड़ी विशाल भीड़ में,
खुद की संभावना तलाशता है.
इस हौसले और उम्मीद के साथ, कि
उसने सुना था, “परिश्रम का फल मीठा होता है”
पर जब वह एक साल बाद
अखबार के दो पूरी तरह भरे पन्नों के बीच
अपना नाम नहीं पाता; कहीं नहीं
तब वह यह सोचता है या
सोचने पर मजबूर होता है कि,
शायद
कहीं उसी की गलती थी,
कहीं कमी रह गयी होगी उसी से.
और वह अगले साल के लिए
एक बढ़ी हुई भीड़ में
स्थान पाने के लिए,
फिर तैयारी में जुड जाता है ,
इस आशा और उम्मीद के साथ, कि
शायद! “परिश्रम का फल मीठा होता है”
शानदार पोस्ट
ReplyDeleteबढ़िया.
ReplyDeleteअसीम,
ReplyDeleteउम्मीद पर ही दुनिया टिकी है ......
सार्थक कविता ......
धन्यवाद
ReplyDelete