Sunday, November 14, 2010

वसु





















(मेरा भांजा 'वसु')


वो भाग रहे वो कूद रहे

वो गिर रहे फिर उठ रहे,

नटखट, चंचल और शैतान,

हैं बिल्कुल एक खरगोश समान,

ये हैं हमारे वसु श्रीमान,


सुबह से शाम तक सबको हिला देते हैं,

चैन ले लेते हैं और नींद चुरा लेते हैं,

कर देते हैं नाक में दम,

जब अपनी पे आ जाएँ तो नहीं किसी जिन्न से कम,

इनकी करतूतों के हैं किस्से तमाम,

ये हैं हमारे वसु श्रीमान,


मम्मी-पापा को कर देते हैं भयभीत,

डांटने पर निकाल देते हैं संगीत,

जो मना करो बस वही करते हैं,

इनकी खुराफातों से सभी डरते हैं,

इनको दूध पिलाना है एक युद्ध समान,

ये हैं हमारे वसु श्रीमान,


पर हैं बड़े ही प्यारे,

‘कृष्ण समान’, सबके दुलारे,

पापा-मम्मी के आँखों के तारे,

नाना-नानी को लगते हैं न्यारे,

मामा-मामी भी हैं इनके फैन,

ऐसे हैं भई वसु हमारे.

3 comments:

  1. "मामू आपने दीदी पर poem लिखी मुझ पर नहीं" ...:)... लड़ाई तो नहीं की उसने आपके साथ ... :)..

    बिलकुल ऐसे, जैसे बाल हनुमान
    ऐसे हैं हमारे वासु श्रीमान ....

    may god bless him always ...:)

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  2. Bachpan ki masumiyat samete ek sunder kavita..... Mujhe bahut achhi lagi aam shabdon me likhi khas panktiyan....

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