Thursday, October 14, 2010

शुक्रिया मुझे जन्म देने का.!
















मुझे पता हैं उठा लोगे तुम,

इसलिए मैं गिरने से नहीं डरती.

तुम्हारी हंसी से मेरे आंसू हंसी में बदल जाते हैं,

एक साहस सा पनप आता है तुम्हे देख के,

मेरी हार जीत में बदलेगी, ये तुम्हे मालूम है

...इसलिए मैं हारने से नहीं डरती,

गिरती हूँ, फिर सम्हालती हूँ, कोशिश करती हूँ,

तुम्हारी आँख की चमक मेरी आँखो की चमक में बदल जाती है,

हवा में जब तुम मुझे उछालते हो, पता है मैं तुम्हारे हाथों में गिरूंगी,

इसलिए अपने आप को तुम्हारे हवाले कर देती हूँ,

सुरक्षित रहती हूँ कुछ समय तक, तुम्हारे पास,

तब तक, जब तक मैं  'दूसरे के हवाले' नहीं हो जाती,

तब तुम्हारी आँखों के आंसू सदा के लिए मेरी आँखों में बस जाते हैं,

मैं कुछ भी कर सकती हूँ, कुछ भी बन सकती हूँ,

जन्म दे सकती हूँ एक उद्धारक को,

अगर खुद जन्म ले सकूं तो..!!


शुक्रिया मुझे जन्म देने का.!

4 comments:

  1. Bahut sunder. Ek ladkee ke manobhawon ko sunderta se bayan karatee hai aapki ye kawita.

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  2. आत्मविश्वास बोध साकार हो गया।

    मन आंदोलित करती रचना।

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  3. धन्यवाद आशा जी , सुज्ञ जी

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