Sunday, October 17, 2010
आज माँ ने दुर्गा का रूप लिया है
एक भीमकाय आकृति गिर रही है पृथ्वी पर,
रक्तरंजित शरीर, छिन्नभिन्न है अहंकार,
आहत है विकराल दानव,
राग-द्वेष-मोह, तीन सर उसके,
कट रहे हैं एक एक कर,
पराजित हो गया है वह ‘शक्ति’ से,
मर्दन हो गया है उसके अस्तित्व का,
बड़ी बड़ी आँखें, बिखरे बाल,
भुजाओं में अस्त्र, जिह्वा है लाल,
प्रचंड है आकार, प्रबल है प्रहार,
महिषासुरमर्दिनी हो तेरी जय,
तम पर हो सदा सत्य की विजय,
आज तुने ‘दुर्गा’ का रूप लिया है,
किया है रक्त पान,
इस दूषित रक्त को अब तू अमृत में बदल,
जिसकी एक बूँद आज सबको मिले,
और तेरा अंश हो सबमें व्याप्त,
हम सब करें पराजित तेरी शक्ति से,
अपने अपने अंदर छिपे दानवों को,
और करें जय अपने मन पर,
माँ तू अब सदा हममें वास कर..
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dussehre ki shubhkaamnaein aseem ji ....
ReplyDeleteथैंक्स..तुमको भी..
ReplyDeleteइस दुर्गापूजा में करो माँ का ध्यान
मिटा करो ह्रदय से तम का नामोनिशान
आज जिधर देखो उधर हैं माँ का चेहरा
हमे पवित्र करने फिर आया है आज दशहरा..
Asimji description of Maa and the wish to kill the "danav" in us are great.
ReplyDeletemaa ka vandan achha laga
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