घास के तिनके से उड़ते जा रहे हैं कुछ ख़याल,
कभी खेत में गिरते, कभी पेड पे हैं टिकते,
कभी गौरैया के घोंसले बनते, कभी लंबे बालों में जा उलझते,
कभी किताब के पन्ने पढते, कभी चूल्हे में जलते,
इतने हलके, इतने महीन, हर कहीं जा पहुँचते,
जब ये गीली मिट्टी पे गिरेंगे, जमेंगे और उगेंगे
सांस लेंगे, धूप में अपनी खुराक लेंगे,
फिर ये तिनका नहीं रहेंगे, बढ़ेंगे और पेड हो जायेंगे
फूलेंगे, फलेंगे और फिर एक तिनके को जन्म देंगे.
और एक नया पेड़ बन जाएंगे ,
खिलेंगे, खिलखिलाएंगे, लहलहायेंगे!
बहुत खूब कहा।
ReplyDeleteधन्यवाद वंदना जी
ReplyDeleteज़िन्दगी कुछ इसी तरह चलती है ... बहुत सुंदर ख़याल...
ReplyDeleteशुक्रिया क्षितिजा
ReplyDeletesimple and sober thought..
ReplyDeleteथैंक्स अलोक जी
ReplyDeleteज़िन्दगी तो बस यु ही चलती रहती है ...........बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सही कहा है ...
ReplyDeleteपूरा जीवन दर्शन सिमट आया है कविता में ...बहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद अना जी, संगीता जी और महेंद्र जी..उत्साहवर्धन के लिए
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
बहुत धन्यवाद संजय जी
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