Saturday, October 9, 2010

तिनके से ख़याल





















घास के तिनके से उड़ते जा रहे हैं कुछ ख़याल,

कभी खेत में गिरते, कभी पेड पे हैं टिकते,

कभी गौरैया के घोंसले बनते, कभी लंबे बालों में जा उलझते,

कभी किताब के पन्ने पढते, कभी चूल्हे में जलते,

इतने हलके, इतने महीन, हर कहीं जा पहुँचते,

जब ये गीली मिट्टी पे गिरेंगे, जमेंगे और उगेंगे

सांस लेंगे, धूप में अपनी खुराक लेंगे,

फिर ये तिनका नहीं रहेंगे, बढ़ेंगे और पेड हो जायेंगे

फूलेंगे, फलेंगे और फिर एक तिनके को जन्म देंगे.

और एक नया पेड़ बन जाएंगे ,

खिलेंगे, खिलखिलाएंगे, लहलहायेंगे!

12 comments:

  1. बहुत खूब कहा।

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  2. धन्यवाद वंदना जी

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  3. ज़िन्दगी कुछ इसी तरह चलती है ... बहुत सुंदर ख़याल...

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  4. शुक्रिया क्षितिजा

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  5. थैंक्स अलोक जी

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  6. ज़िन्दगी तो बस यु ही चलती रहती है ...........बढ़िया प्रस्तुति

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  7. पूरा जीवन दर्शन सिमट आया है कविता में ...बहुत ही सुंदर।

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  8. धन्यवाद अना जी, संगीता जी और महेंद्र जी..उत्साहवर्धन के लिए

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  9. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

    ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  10. बहुत धन्यवाद संजय जी

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