Sunday, May 16, 2010

आज रात्रि है 'मधुशाला' ...


निद्रा बन जाती है साकी
लगी पिलाने स्वाप्नों की हाला,
नही रोक पता ये मन भी
इन आँखों का मोहक प्याला.
प्रतीक्षण पाश मे जकड़ रही है
सम्मोहित करती ये मधुबाला,
किसी के वश मे ना अब आएगी
आज रात्रि है 'मधुशाला'.

(बच्चन की कालजयी कृति 'मधुशाला' से प्रेरित)

2 comments: