Sunday, August 22, 2010
कॉमनवेल्थ खेल
सुबह के वीराने में आती है एक आवाज,
कुछ लोग लगाते हैं गुहार,
की उनको पिछली रात नींद नहीं आई.
एक भयानक सपना जो सोने के कुछ ही देर बाद आया
और फिर वे रात भर सो नहीं पाए.
सपना ये था -
कॉमनवेल्थ खेल हो रहे हैं!
खिलाडियों ने आने से मना कर दिया है,
तो अधिकारी, राजनेता और अर्गानिजिंग कमिटी के लोग
खुद ही खेल रहे हैं खेल.
जबरदस्ती टिकट बेचे जा रहे हैं,
न खरीदने वाले जेल जा रहे हैं
खिलाडी भाड़े पे आ रहे हैं
खेल कुछ भिन्न से हैं –
कुश्ती – एक तगड़े और एक कमजोर के बीच, मौत तक
शूटिंग – आँख पे पट्टी बांध के, निशाना आदमी पे
फुटबाल – गोल रहित मैदान में जानवरों और आदमियों के बीच
हाकी – महिलाओं और पुरुषों के बीच
तैराकी- स्विमिंग पूल में मिलायी गयी है खून की कुछ बूँदें
शतरंज – अधिकारी, राजनेता खेल रहे हैं, विदेशियों के साथ
शहर में कर्फ्यूं हैं – खेलों के खत्म होने तक..........
.......कॉमनवेल्थ खेल अब खत्म हो गए हैं.
सारे स्टेडियम तोड़ दिए गए हैं.
सारे सड़कें, पुल और फ्ल्योवर भी तहस नहस कर दिए गए हैं.
खेल गाँव भी ध्वस्त किया गया है,
अब सब कुछ फिर बनेगा, नए बजट से
अब भारत ओलम्पिक की मेजबानी करेगा!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
यह तुम्हारी अब तक कि सर्वश्रेष्ठ कविता है…बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद अशोक
ReplyDeleteअपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
ReplyDeleteकल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
ReplyDeleteकल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
bahut hi achha likha hai aapne aseem ji ....
ReplyDeletebehad ghatiya sharmnaak
ReplyDelete