समाधान..
समाधान की तलाश का सफर
Sunday, May 16, 2010
आज रात्रि है 'मधुशाला' ...
निद्रा बन जाती है साकी
लगी पिलाने स्वाप्नों की हाला,
नही रोक पता ये मन भी
इन आँखों का मोहक प्याला.
प्रतीक्षण पाश मे जकड़ रही है
सम्मोहित करती ये मधुबाला,
किसी के वश मे ना अब आएगी
आज रात्रि है 'मधुशाला'.
(बच्चन की कालजयी कृति 'मधुशाला' से प्रेरित)
2 comments:
Aarti Bhardwaj
May 19, 2010 at 1:50 AM
Very Well Written Aseemji.. Bahut Khoob..
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Udan Tashtari
May 30, 2010 at 7:14 AM
बहुत बढ़िया!
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Very Well Written Aseemji.. Bahut Khoob..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
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