ब्लॉग का नाम "उलझन" से बदल कर "समाधान" कर दिया है..उसका कारण
परसों मुझे एक संभ्रांत व्यक्ति ने सलाह दी,कि
अपनी उलझन को सुलझाईये
तथा समाधान कि तरफ कदम बढाइये.
मुझे उनकी बात पसंद आई
मैंने अपने अंदर झाँका और खुद को टटोला
अंदर से कुछ ध्वनि सुनाई पड़ी,
बड़ी ही मधुर, बड़ी ही शीतल
एक ऐसी झील की तरह,
जिसके किनारे बैठ, उठने का मन नहीं होता
मन होता है बस, झील के बहते जल की शाश्वतता के दर्शन करता रहूँ
एक ऐसे बाग की तरह,
जिसके फूलों की सुगंध
दिल, सदा-सदा के लिए खुद में बसा लेना चाहता है.
एक ऐसे पहाड़ कि तरह
जिसका शिखर आसमान से भी ऊँचा है.
और जहाँ पहुँच कर लेश मात्र भी भय नहीं लगता
ऐसे नारी कि तरह,
जिसकी सुंदरता शब्दों में बयां नहीं हो सकती
"उलझन" का "समाधान" मिलता नज़र आ रहा है,
"समाधान" भी तलाशता है कोई ?
"समाधान" तो है ही, फिर "तलाश" कैसी?
कहीं "समाधान" के होने पर भरोसा, कम तो नहीं?
या कहीं "उलझन" तो नहीं इतनी कि
समाधान सामने नहीं आ रहा?
कैसे सुलझेगी यह 'उलझन'
कैसे गिरहें खुलेंगी,
कसे आएगा 'समाधान'
कहाँ तलाश करूँ उसको?
मैं बाहर भटकता, भटकता थक गया हूँ,
कहीं वो भीतर ही तो नहीं?
झलक तो दिखती है 'उसकी' कभी कभी
"ध्रुव तारे" जैसे वो नज़र आ जाता है
पर दृष्टि उस पर टिक ही नहीं पाती
ध्रुव होने के बावजूद वो नज़रों से ओझल हो जाता है
'ध्रुव तारा' बनने कि चाह है मुझमे
सदा अटल, सदा शीतल, सदा स्थिर - ध्रुव
अपरिवर्तनशील, शाश्वत, नित्य
जहाँ समाधन ही समाधान है,
किसी तरह कि उलझन का नामोनिशान नहीं है
पर "समाधान" की तलाश का "सफर" भी कम मजेदार नहीं!
११-१२-२०११, नॉएडा